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तीन बहनें
तीन बहनें
प्रकाशक :
राधाकृष्ण प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2017 |
पृष्ठ :99
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 10268
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आईएसबीएन :9788183618410 |
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘‘तुम कहते हो, जीवन सुन्दर है...ठीक है, लेकिन उसके सुन्दर लगने से ही क्या होता है। हम तीनों बहनों के लिए अभी तक के जीवन में क्या सुन्दर है ? जैसे पौधे को दीमक खा जाती है, उसी तरह हम तीनों जीवन के हाथों में घुटती रही हैं।... अरे लो, मैं तो रोने भी लगी-मुझे रोना नहीं चाहिए...’’ ‘‘मुझे लगता है कि मनुष्य के पास एक आस्था होनी चाहिए या और कुछ नहीं तो उसे कोई विश्वास और आस्था खोज लेनी चाहिए, वर्ना उसकी जिन्दगी सूनी और खोखली हो जाएगी।...आदमी को मालूम तो होना चाहिए कि उसकी जिन्दगी का अर्थ क्या है...’’ ‘‘प्यारी बहनो, हमारे जीवन का अन्त यहीं नहीं हो जाएगा। हम लोग जीवित रहेंगी, यह संगीत कैसा आनन्ददायक, कैसा सुखद है कि मन होता है, थोड़ी देर और चलता रहे, ताकि हम जान लें कि हम किसलिए जिन्दा हैं, हमें पता चल जाए कि हम दुःख क्यों भोग रही हैं।’’ ‘‘काश, जो कुछ हमने जिया है, वह सिर्फ जिन्दगी का रफ-ड्राफ्ट होता और इसे फेयर करने का एक अवसर हमें और मिलता।’’ चेख़व की रचनाओं की आत्मीयता करुणा और खास क़िस्म की निराश उदासी लगभग आत्मदया जैसी ! मुझे फल छूती है ? मैं उसके प्रभाव से लगभग मोहाच्छन्न था ? उसी श्रद्धा से मैने इन नाटकों को हाथ लगाया था ? रूसी भाषा नहीं जानता था, मगर अधिक से अधिक ईमानदारी से उसके नाटकों की मौलिक शक्ति तक पहुँचना चाहता था इसलिए तीन अंग्रेजी अनुवाद को सामने रखकर एक-एक वाक्य पड़ता और मूल को पकड़ने की कोशिश करता ? आधार बनाया मॉस्को के अनुवाद को ? बाद में सुना, अनुवादों को पाठकों ने पसन्द किया अनेक रंग-संस्थानों और रेडियो इत्यादि ने इन्हें अपनाया पाठ्यक्रम में भी उन्हें लिया गया ?
- राजेन्द्र यादव
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